Pages

हत्यारे का पत्र !



प्रिय नरेन्द्र दाभोळकरजी

आपको खत लिखने में सबसे पहली दिक़्क़त तो यह है की  आपको संबोधित कैसे करे ? आम तौर पर कोई इन्सान मर जाए तो उसके साथ "स्वर्गस्थ " लिखने का रिवाज है हमारे यहाँ ! यह रिवाज स्वर्ग की कल्पना से आया है लेकिन स्वर्ग तो अभी तक किसी ने देखा नहीं है तो फिर आपको में स्वर्गवासी कैसे लिख सकता हूँ ? चलो मान लेते है की स्वर्ग है लेकिन फिर भी आपने कहाँ कोई पुण्य के काम किए थे की वो आपको मिलता ? आपने तो पूरी जिंदगी ग़रीबों की सेवा की ! अपनी पूरी जिंदगी धरम के चंगुल में फंसे लोगो को बाहर निकालने मेंमंत्र-तंत्र के चमत्कारों पर्दाफ़ाश करने में और इस भोली जनता को वैज्ञानिक अभिगम से जीना सिखाने में बिता दी ! अगर स्वर्ग हो तो भी आपको कैसे मिल सकता है भला ?  नहीं मिलता और ना ही मिला होगा ! स्वर्ग या फिर जन्नत के प्रभारी आपको अगर सामने से बुलाते फिर भी आप वहां जाते ! इसलिए मृत्यु के पश्चात दिए जाते सारे संबोधन हटा कर सिर्फ प्रिय रखा है ! 

आपकी बिदाई को आजकल करते करते एक साल हो गया ! पूरे ३६५ दिन पहले २० अगस्त की सुबह आप टहलने निकले थे और दो अनजान बंदूक़धारिओ ने आप को ढेर कर दिया था ! महाराष्ट्र में अंधश्रद्धा निर्मूलन के लिए आपने दो दशक तक खुद को तार तार कर दिया और आखिर उस राह पर चलते आपने पुलिस की सुरक्षा लेने से मौत को गले लगाना बेहतर समझा ! पुलिस आपकी हत्या के केस की जाँच कर रही है ! 

-अरे हाँएक बात आपसे खास कहनी थीआपको किसने गोली मारी उसका कुछ सुराग नहीं मिल रहा था तो पुलिस ने खास तांत्रिक की भी मदद ली ! मैं जानता हुं की यह सुनकर आपके दिमाग को ( दिल को नहीं ) चोट पहुंची होगी पर क्या करे ? आप तो जानते है बेचारी पुलिस को कितने सारे काम होते है और आप ठहरे प्रसिद्घ बौद्धिक इंसान ! बिना सुबूत कभी दलील नहीं करनेवाले और सत्य के अलावा कोई बात नहीं कहने वाले इन्सान ! आपके चाहने वाले ( अनुयायी नहीं ) जल्द जांच करने के लिए और आपके हत्यारों को देश के कानून के मुताबिक सजा दिलाने के पुलिस पर दबाव बढ़ा रहे थे तो फिर पुलिस बेचारी क्या करे ? इसीलिए उन्होंने तांत्रिक को बुलाया था ! आपके आत्मा से बातचीत कर आपकी हत्या का सुराग ढूंढने की कोशिश भी कर ली ! अब आप ही आत्मा-फात्मा में नहीं मानते थे उस बाद का आपके मर जाने के बाद क्या मोल ? खेरआप इस बात का बुरा मत मानिए क्योंकि बुरा मानने के लिए इससे भी बड़ी कई बातें बनी है इस एक साल में !

दाभोळकरजी आपकी हत्या हुई उसके बाद हमको ऐसा लगता था की चलो ठीक है आपकी जान गई सो गई लेकिन अब तो आपके महाराष्ट्र में किसी और इन्सान की जान कभी नहीं जाएगी ! आपकी मौत से शर्मशार मराठी माणूस या फिर देश बाकी सभी अब (अंध)श्रद्धा से प्रेरित होकर उस राह नहीं चलेंगे और वैज्ञानिक अभिगम अपना कर चैन से जिएंगे ! ( अलबत्ता यही आशा हमको गांधी की हत्या हुई तब भी थी और लगा था की शायद यह मानव जाति की आख़िरी हत्या होगी ) हमको तो लग रहा था की अब आपकी यह शहादत रंग लाएगी और उठते बैठते लोगो अपनी धार्मिक भावनाओं को भड़कने नहीं देंगे ! हमको यक़ीनन ऐसा था की लोग अब तंत्र-मंत्र या धरम-करम से नहीं पर अपनी तर्क शक्ति से सोचेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ दाभोळकरजी ! आपकी हत्या के बाद पुणे में रास्ते पर उतर आई थी वो शोक ग्रस्त जनता फिर से अपने नशीले धर्म रस में लीन हो गई ! 

आपको शायद आघात लगे लेकिन जिस विवेक बुद्धि की आप बात कहते थे उसका तो दिवाला निकल गया ! उसी पुणे शहर में एक अनजान धार्मिक फेसबुक पोस्ट के चलते एक नौजवान का सरे आम कत्ल कर दिया गया ! दंगे भड़क उठे ! मानो आपके ही शहर में आपकी मौत से कोई फर्क नहीं पड़ा ! आप जिस विवेक बुद्धि की बात करते थेतंत्र-मंत्र के बदले खुद में विश्वास रखने की और विज्ञान को सत्य मानने की बात कहते थे उसे सब भूल गए ! आपको यह क्या सुझा भले आदमी ? आप तो जानते थे की लोग आपको नहीं जीने देंगे ! गेलिलिओ से गांधी तक के सारे उदाहरण जानते थे आप फिर भी क्यों आप हमें सुधारने निकले ? जिस देश में जन्मघूटी में ही धर्म-तंत्र-मंत्र पिला दिया जाता है उस देश में वैज्ञानिक अभिगम और तर्क यह सब कहने की क्या जरुरत थी ? अंधश्रद्धा निर्मूलन के लिए कानून की मांग करने की क्या जरुरत थी ? देश में कितने सारे कानून बने पड़े है फिर भी कहाँ कुछ फर्क पड़ता है ? आपका महाराष्ट्र और मेरा गुजरात तो प्रोग्रेसिव कहा जाता है फिर भी लोग धागे बांधते है,तिलक-टिका करते हैशगुन-अपशगुन देखते है अरे और तो और डायन कहकर स्त्री को मार देते हैदलित कहकर जीते जागते इन्सान को भून देते है ! आपको यह क्या सुझा भले आदमी ? लोगो की सेवा का ऐसा जुनून तो कोई रखता है क्या कभी ? खेर !
दाभोळकरजी आपको भले ही पुष्पक विमान लेने नहीं आया था लेकिन अब हमारे यहाँ यह पढ़ाया जाता है ! वह विमान अपने ही देश में बना है वो तो आपको पता ही होगा ! अगर नहीं पता हो तो आप नोट कर लेना ! अभी हमारे यहाँ एक नये बत्रा बाबा आये है ! उन्होंने सुन्दर क़िताबें लिखी है ! उसमे धर्म-संस्कृति वह सब पढ़ाया जाता है ! ना ना.… उससे तो हमें क्या एतराज़ हो सकता है लेकिन आपने जिस तर्क के लिए अपनी जान दे दी उसका नामो निशान नहीं है उसमे ! ज्यादा दिमाग नहीं चलाने काजो कहा जाए वह करने काधर्म-संस्कृति के गौरव का अनुभव करने का - ऐसा वो हमें कहते है ! अब हम तो क्या कर सकते है ? वो कहते है उतना करते है ! आपकी तरह जान दे देने की हिम्मत नहीं हम में ! आज आप शायद होते तो बत्रा बाबा की किताबों को आग लगाते ! पर अब क्या ?

आपके जाने के बाद यहाँ काफी कुछ बदल चुका है ! सरकार भी और लोग भी ! खेर सरकारें बदले या बदले क्या फर्क पड़ता है ! आपके अंधश्रद्धा निर्मूलन कानून को सभी सरकारों ने लात मारी ही थी ! आजकल यहाँ सरकार के अलावा बाकी चीज़े बहुत चर्चे में है ! अपने बगल में उत्तर प्रदेश में तो मानो धार्मिक भावनाएँ भड़कने का सैलाब आया है ! मंदिर-मस्जिद के लाउडस्पीकर की आवाज़ पर भी वहां दंगे हो रहे है ! पिछले चंद महीनों में तो वहाँ छोटी-मोटी धार्मिक भावनाएँ भड़क जाने से ६०० दंगे हो चुके है बोलो !!

इस खत के जरिये आपको एक खास बात यह भी पूछनी थी की आपने तो अपने हत्यारों को देखा होगा ! उसमे कोई चेहरा मेरे जैसा तो नहीं था  ? माफ़ करे लेकिन यह इसलिए पूछना पड रहा है क्योंकि मुझे शक है की आपकी हत्या उन दो अनजान बंदूक़धारिओ ने नहीं बल्कि मेरे जैसे किसी आदमी ने की है ! इस देश की सात अरब जनता ने की है ! हमने ही डर मारे हमारे धर्मगुरू कोहमारे मुल्ला-मौलवी कोहमारे पादरिओ को खुली छूट दे रखी है ! हमने ही दिमाग बंध करके श्रद्धा के नाम पर सरकार चुनी है इसलिए हम ही आपके असली कातिल है ! हमें माफ़ करना दाभोळकरजी ! हमें माफ़ करना ! 

आपका,
एक भारतीय 

मेहुल मंगुबहनअहमदाबाद -गुजरात
कविताओ का ब्लॉग : http://communitication.blogspot.in/


अग्रिम गुजराती दैनिक संदेश में दिनांक २० अगस्त २०१४ को प्रकाशित लेख का लेखक के द्वारा किया गया हिंदी भावानुवाद )